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एक क्लीक के हवाले हमारी याददाश्त

  इंटरनेट के नशे में तो हम पहले से ही थे, उस पर महामारी के दौर ने इस निर्भरता को और बढ़ा दिया है। शोध कहते हैं कि इसका असर हमारी नींद के साथ-साथ याददाश्त पर भी पड़ रहा है। उंगलियों पर हिसाब गिन लेने, कई एक फोन नंबर जुबानी याद होने, तारीखें याद रखने जैसी बातें तो खत्म ही मानिए। इंटरनेट और याददाश्त के रिश्ते पर राजीव रंजन का दिलचस्प आलेख कंपनी में बतौर कंटेंट एडिटरकाम कर रहे पंकज कुमार अपने व्यस्त शिड्यूल के बावजूद मैच देखना कभी नहीं भूलते। असल में उन्हें क्रिकेट के आंकड़ों में बहुत रुचि है। सुनील गावस्कर से लेकर सचिन तेंदुलकर तक के समय के सारे क्रिकेटरों के रिकॉर्ड्स उन्हें मुंहजुबानी याद हैं। और भी कई रिकॉर्ड उन्हें याद हैं। लेकिन अगर उनसे पिछले एक-दो दशक के रिकॉर्ड के बारे में बात करें, तो वह मुस्करा कर कहते हैं, 'अब याद नहीं रख पाते वैसे जरूरत भी क्या है? सारे रिकॉर्ड इंटरनेट पर तो उपलब्ध हैं यह कहानी सिर्फ पंकज की नहीं, असंख्य लोगों की है,जो स्मरणशक्ति परजोर डालने की जहमत नहीं उठाना चाहते, क्योंकि इंटरनेट है न! बस एक क्लिक से स्क्रीन पर तथ्यों का पूरा संसार चमक उठता है। पर शायद